Sunday, January 20, 2008

inspired in PD class

है भार कहीं हैं , झंकार कहीं
कहीं शोख वादियों में धुंध कहीं,
है रोज सवेरे की सर्द कहीं ,
कहीं सवेरे में अ म कहीं ।


ख्याल-ए - हीजात में मैं जब जगा ,
तो जज्बात - ए - खयालात में मैं नम जगा ,
परस्तिश -ए - इश्क की शम्मा मत जलना ,
जब भी नम में जागोगे तो फली श में कहोगे की मैं ,
जागा तो क्यों जागा ।

ख्याल - ए - हीजात , तस्सवुर -ए - आंधियां ,
परस्तीश की पर्चायियाँ , एहतराम - ए - मरहम ,
इब्तदा -ए- इश्क बस वसुअत -ए- खुदा है ।

some fun in LAW class :)

है सुर्ख शोखियों सा ये सुर्सुराना तेरा
है सुर्ख वादियों में यूं लहराना तेरा
है शाम सी सर्द हवाए है आज ,
है पास तुम्हारे हम भी और साया है तेरा


वादियों में भी गुलाबों सी शोखी ,
रानायियों में भी वो यादों की गर्मी
है अआज चले है हम यूहीं जब कल चले थे युही ,
वो शाम कहती थी हम है तुम्हारे ,
वो शाम कहती है कहाँ है वो वादे तुम्हारे


आज फीर इन कोपलों में हम खो गए है ,
फीर आज इन हवायों में हम खो गए हैं
इस दर्द--दी की दास्ताँ तो सुने ,
हम आज फिर तनहा हो गए है